Saturday 19 May 2012

अमृता प्रीतम




हम  ने  आज  ये  दुनिया  बेचीं, 
और  एक  दीं  खरीद  के  लाये, 
बात  कुफ्र  की  है  हम  ने..

अम्बर  की  एक  पाक  सुराही 
बदल  का  इक  जाम  उठा  कर 
घूँट  चांदनी  पि  है  हमने 
बात  कुफ्र  की  है  हमने..
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मेरी  आग  मुझे  मुबारक,
की  आज  सूरज  मेरे  पास  आया,
और  एक  कोयला  मांग  कर  उस  ने,
अपनी  आग  सुलगाई  है ...
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तिनकों  की  मेरी  झोंद्प्री (हट),
कोई  आसन  कहाँ  बिछाऊँ ,
की  तेरी  याद  की  चिंगारी,
मेहमान  बन  कर  आई  है ..
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जाने  खुदा  की  रातों  को  क्या  हुआ,
वो  अँधेरे  में  दौड़ -टी  और  भागती 
नींद  का  जुगनू  पकड़ने  लगी...

सुनार  ने  दिल  की  अंगूठी  तराश  दी 
और  मेरी  तकदीर  उस  में 
दर्द  का  मोती  जड़ने  लगी..

और  जब  दुनिया  ने  सूली  गाद  दी,
तो  हर  मंसूर  की  आंखें 
अपना  मुक्कद्दर  पड़ने  लगी ...
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सूरज  तो  द्वार  पर  आ  गया,
लेकिन  किसी  किरण  ने  उठ  कर 
उस  का  स्वागत  नहीं  किया..
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4 comments:

  1. .

    अम्बर की एक पाक सुराही
    बदल का इक जाम उठा कर
    घूँट चांदनी पि है हमने
    बात कुफ्र की है हमने..

    waah !...Beautiful...

    Thanks for sharing.

    .

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