Tuesday, 26 June 2012

ये क्या किया आपा...



मैं  मेरी  बड़ी  बहन   जो  M.A. कर  रही  थी  और  मेरी  प्यारी  माँ  और  अब्बू , हम  सब  बुहत  ही  खुशमिजाजी  से  रह  
रहे  थे , कोई  अंदाज़ा  ही  नहीं  था  के  परेशानियाँ  क्या  होती  है  जब  तक  उनसे  पाला  पड़ा  नहीं  था .
एक  रोज़  हमेशा  की  तरह  मैं  स्कूल  निकल  गयी  और  अब्बू  आप  को  छोरने  कॉलेज  चले  गये , माँ  हमेशा  
की तरह किचेन में  हम  सब  के  लिए  लज़ीज़  डिशेस  बनाना  में  मशगूल  थी .
शाम  ढल  गयी  मैं  स्कूल  से  घर  आ चुकी  थी , पर आज   आपा  लेट  थी  वो  अभी  तक  नहीं  थी , माँ  को  थोड़ी  
चिंता  भी  हुई  फिर  ये  कह  के  उन्होंने  अपने  मन को  बहला  लिया  के  शायद  एक्स्ट्रा  क्लास्सेस  होंगी .
तभी  अचानक  फ़ोन  की  घंटी  बजी … मैंने  लापरवाही  में  रिसीवर  उठाया  और  अपने  चंचल  अंदाज़  में  
हेल्लो  किया  ही  था  की  उधर  से  आपा   की  घबरायी  हुई  आवाज़  लगी . मैंने  बिना  कुछ  सुने  आपा  से  पुछा  “हो  
कहाँ  आप ?”. आपा  ने  जो  जवाब  दिया  उसके  बाद  तो  मेरे  पैरो तले   ज़मीन  नहीं  रही , वो  बोली  “माँ  से  कह  देना  
मैं  अब  नहीं  आउंगी , मुझे  माफ़  कर  दें ” इससे  पहले  मैं  कुछ  पूछती  फ़ोन  कट  चुक्का  था . उस  
वक़्त  न  मोबाइल  थे  न  ही  कालर  ID का  ज़माना  जो  कॉल  बेक  क्र  सकते . 
मेरे  तो  कुछ  समझ  नहीं  अर्ह  था  क्या  करूं ,, पर  मेरी  घबराहट  से  माँ  समझ  गयी  थी  कुछ  गड़बड़  
है , उन्होंने  फ़ौरन  मेरा  हाथ  पकड़  के  पुछा , “बेटा  क्या  बात  है ?” मेरे  मुह  से  सिर्फ  itna  निकल  की  “आपा  
अब  नहीं  आयेगी .” माँ  तो  जैसे  एक  पल  को  सुन्न  हो  गयी  हो , फिर  उन्होंने  अपने  आप  को  सँभालते  हुआ  पुछा , 
“कहाँ  गयी  है , क्यूँ  गयी  है ?”.
मुझे  कुछ  जवाब  नहीं  पता  था , तभी  मेरे  ज़हन  में  आया  की  आपा   अक्सर  एक  डायरी   में  कुछ  लिखती  रहती  
थी , मैं  बेतहाशा  आप  की  अलमारी  की  तरफ  भागी , और  पागलो  की  तरह  डायरी   धुन्धने  लगी , सब  कपडे  तितिर  
बितिर  करने  के  बाद  मुझे  डायरी  दिख  ही  गयी . मैं  फ़ौरन  वो  डायरी   लेकर  माँ  के  पास  पहुंची .
“शायद  इसमें  कुछ  पता  चल  जाये ” मैं  एक  उम्मीद  के  साथ  माँ  की  तरफ  वो  डायरी  बड़ा दी .
डायरी  के  पहले  ही  पन्ने  पे  लिखा  था ..
“आज  मैं  अजय  से  मिलने  गयी  थी ,  मुझे  खुद  नहीं  पता  कब  मैं  उसकी  तरफ  खीच  गयी , मैंने  खुद  को  
बहुत  समझाया  के  ये  सही  नहीं  है , माँ  अब्बू  कभी  इस  रिश्ते  के  लिए  राज़ी  नहीं  होंगे .. पर  अजय  का  
दीवाना  पण  मुझे  उसकी  तरफ  बढ़ने  को  मजबूर  कर  दिया .”
माँ  इससे  जादा  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकती  थी , उनके  हाथ  से  डायरी  छूट  गयी  और  वो   रोने  लगी . मैंने  फ़ौरन  
पहला  पेज  पढ़ा  के  देखूं  माजरा  क्या  है … इतनी  बात  से  ये  तो  साफ़  हो  गया  था  के  आप  किसी  के  साथ  चली  
गयी  है .. वो  भी  एक  हिन्दू  लड़के  के  साथ !!!माँ  ने  मुझसे  कहा  फ़ौरन  अब्बू  को  बुल्वालूँ , मैंने  अब्बू  को  दुकान  फोने  किया  के  माँ  की  तबियत  नहीं  
ठीक  है  आप  फ़ौरन  अजएं .
अब्बू  कुछ  ही  मिनटों  में  घर  पे  मौजूद  थे , घबराये  हुए  जैसे  ही  कमरे  में  दाखिल  हुए , माँ  रोने  
लगी  जोर  जोर  से . अब्बू  ने  उन्हें  संभाला  और  पुछा  के  बात  क्या  है .
माँ  ने  रोते  रोते  सब  बता  दिया , अब्बू  का  गुस्सा  सातवे  आसमान  पे था , मुझे  भी  शक  की  नज़र  से  देखने  
लगे  … मैं  घबरा  गयी  और  अपने  कमरे  में  घुस  गयी , बेखयाली  में  मैंने  देखा  ही  नहीं  डायरी  मेरे  हाथ  
में  ही  थी .
उधर  अब्बू  के  जोर  जोर  से  चिल्लाने  की  आवाज़  अ  रही  थी , माँ  पर  इलज़ाम  लगाये  जा रहे  थे  की  उन्होंने  सही  से  
परवरिश  नहीं   की … और  न  जाने  क्या  क्या .
मैंने  अपना  मंद  दिवेर्ट  करने  के   लिए  डायरी  के  पन्ने  पलटने  शुरू  किये  ताकि  पूरी  कहानी  पता  चल  सके .
लास्ट  के  पेज  पे  लिखा  था … 
“अब  कोई  रास्ता  समझ  नहीं  अर्ह  है , पढाई  ख़तम  होने  वाली  है  अब्बू  रिश्ते  देख  रहे  हैं , मैं  किसी  और  से  
निकाह  नहीं  कर  सकती … उफ़  अल्लाह  मैं  क्या  करूं ? अजय  भी  मेरे  बिना  जन  दे  देगा , कुछ  समझ  नहीं  आ रहा  
अगर  कल  कुछ  न  कर  पाई  तो  कभी  नहीं  कर  पाऊँगी . या  अल्लाह  मुझे  ताक़त  दे  के  मैं  अपना  प्यार  हासिल  कर  
लूँ .”
आगे  के  पन्ने  खली  थे  शायद  ये  नोट  आपा  ने  कल  रात  लिखा  हो . तभी  दरवाज़ा  जोर  से  बंद  होने  की  
आवाज़  ई , मैंने  बहार  झांक  के  देखा  तो  अब्बू  जा  चुके  थे  घर  से  बहार .
मैं  फ़ौरन  माँ  के  पास  गयी , माँ  रो  रही  थी , मैंने  उन्हें  चुप  कृते  हुए  पुछा  अब्बू  कहाँ  गए , माँ  
ने  कहा ,  “स्टेशन  गए  हैं  धुन्धने . उस  कामिनी  ने  तो  नाक  कटवा  दी , ज़माने  में  हम  लोग  क्या  मुह  
दिखायेंगे  के  हमारी  लड़की  एक  हिन्दू  के  साथ  भाग  गयी , कितनी  थू  थू  होगी , तुम्हारी  शादी  भी  नहीं  हो  
पायेगी … “, मुझे  तो  कुछ  समझ  नहीं  आ  रहा  था , दिमाग  कम  करना  बंद   कर  चुक्का  था , मैं  तो  बस  ये  
चाहती  थी  आपा   खैरियत  से  घर  लौट  आय   बस .
अब  रोज़  का  रौतिने  बन  गया  था , अब्बू  आपा  को  खोजने   निकल  जाते  , माँ  रोटी  रहती  और  मैं  फोन  के  पास  
बैठी  रहती  की  शायद  कोई  फोन  आ जाये  आप  का . करीब एक   हफ्ता  गुज़र  गया  था , शाम  के  तीन  बजे  थे , 
फोन  बजा , उस  वक़्त  अब्बू  घर   पे  थे , उन्होंने  लपक  के  रिसीवर  उठाया , उधर  से  आवाज़  आई  , “हेल्लो ”, 
अब्बू  तपाक  से  बोले , “शहनाज़   ” इससे   पहले  अब्बू  कुछ  और  कहते  आपा   ने  माफ़ी  मंगनी  शुरू  कर  दी , और  इल्तेजा  
की  के  अब्बू  उसे  बक्श  दें , वो खुश  है  उसने  शादी  कर ली .” अब्बू  ने  अपना  गुस्सा  पीते  हुए  कहा , “तुम  हो  
कहाँ , मुझे  एक  बार  मिलना  है  तुमसे .” आपा  ने  डरते  हुए  अब्बू  से  क़सम  ली  के  वो  कुछ  गलत  नहीं  
करेंगे  तभी  वो  अपना  पता  देगी , अब्बू  ने  बेदिली  से  कसम  देदी . आपा  ने  पता  बता  दिया  वो  उस  वक्त  दिल्ली  
में  थी .
अब्बू  ने  तुरंत  दिल्ली  जाने  की  तय्यारी  की , मैं  और  माँ  बस  दुआ   कर  रहे  थे  के  सब  ठीक  हो जाये  पता  नहीं  अब्बू  
के  दिल  में  क्या  है .
अगले  दिन  अब्बू  आपा  के  साथ  अगये  थे , आपा   दरी  हुई  लग  रही  थी , मैंने  आपा  को  गले  लगाया , माँ  ने  बात  भी  
नहीं  की .माँ  और  अब्बू  आपस  में  बात  कर  रहे  थे  जब  मैंने  सुना  माँ  कह  रही  थी , “अब  जल्दी  इसके  लिए  लड़का  ढूंढ़  के  
 इसे  विदा  करदो .” अब्बू  ने  कहा ,  “नहीं  मैं  उसे  (अजय ) वडा  करके  लाया  हु  के   शेनज़  को  यहाँ  पे  कुछ  
रस्म  करके  वापस  भेज  दूंगा  मैं  वडा  नहीं  तोदुनगा , तुम  समझने  की  कोशिश  करो  अगर  मैंने  
ज़बरदस्ती  की  तो  ये  लड़की  खुदकशी  कर  लेगी , जाने  दो  उसे , बस  जहाँ  रहे  खुश   रहे , मैंने  देखा  है  लड़का  
उसे  बहुत  चाहता  है  खुश  रखेगा .”
मुझे  तो  यकीन  नहीं  हुआ  के  अब्बू  इतनी  समझदारी  से  काम  लेंगे , मैं  बहुत  खुश  थी , फ़ौरन  आप  के  
पास  गयी  और  बोली , मुबारक  हो , अब्बू  मान  गए .. आपा  मुस्कुराई  और  मुझे  गले  से  लगा  लिया .
फिर  ज़माने  से  मामला  दबाने  को , ये  बताया  गया  की  लड़का  मुस्लमान  है , उसकी  फॅमिली  नहीं  है , दिल्ली  में  
कम  करता  है , और  एक  छोटी  सी  रस्म  करके  आपा  को  विदा  कर  दिया  गया .
आज  5 साल  हो  गये , आपा  बहुत  खुश  है  अजय  के  साथ  और  माँ  अब्बू  से  मिलने  भी  आती  है .
अगर  हर  माँ  बाप  इतनी  समझदारी  से  फैसला  लें  तो  ये  जो  होनोर  किलिंग  के  मसले  है  ये  कभी  दर  पेश  न  
आयें . अल्लाह  हम  सब  को  ये  सिफत  अता   करे  के  हम  समझ  और  सुकून  से  फैसले  लें . प्यार  करना  कोई  गुनाह  नहीं  
है  ये  एक  पाक  एहसास  है .
Author:
सबा  युनुस  “ख्वाब"
Kanpur 

Friday, 1 June 2012

वयोलेता पारा




खुदा की लानत इस खाली आसमान पर
और रात के सितारों पर
खुदा की लानत इस रास्ता चलती
और कलकल करती नदी पर
खुदा की लानत इन पत्थरों पर
जो राहों की धूल में लिपटे हुए
खुदा की लानत इस चूल्हे की आग पर
की मेरा दिल कच्चा गोस्त हे
खुदा की लानत वक़्त के कानूनों पर
जो हमारे दर्द को छल जाते हें.


 4 October 1917 – 5 February १९६७
चिली 

Saturday, 26 May 2012

अमृता प्रीतम



धरती ने गहरी सांस ली, आसमान ने सिसकी भरी
फूलों का एक काफिला था, आज वह रेगिस्तान से गुज़रा 
मेरे इश्क के ज़ख्म तेरी याद ने सीए थे
आज मैंने टाँके खोलकर, वह धागा तुझे लौटा दिया
मेरी रात जाग रही है, तेरा ख्याल सो गया..

Saturday, 19 May 2012

अमृता प्रीतम




हम  ने  आज  ये  दुनिया  बेचीं, 
और  एक  दीं  खरीद  के  लाये, 
बात  कुफ्र  की  है  हम  ने..

अम्बर  की  एक  पाक  सुराही 
बदल  का  इक  जाम  उठा  कर 
घूँट  चांदनी  पि  है  हमने 
बात  कुफ्र  की  है  हमने..
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मेरी  आग  मुझे  मुबारक,
की  आज  सूरज  मेरे  पास  आया,
और  एक  कोयला  मांग  कर  उस  ने,
अपनी  आग  सुलगाई  है ...
**************
तिनकों  की  मेरी  झोंद्प्री (हट),
कोई  आसन  कहाँ  बिछाऊँ ,
की  तेरी  याद  की  चिंगारी,
मेहमान  बन  कर  आई  है ..
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जाने  खुदा  की  रातों  को  क्या  हुआ,
वो  अँधेरे  में  दौड़ -टी  और  भागती 
नींद  का  जुगनू  पकड़ने  लगी...

सुनार  ने  दिल  की  अंगूठी  तराश  दी 
और  मेरी  तकदीर  उस  में 
दर्द  का  मोती  जड़ने  लगी..

और  जब  दुनिया  ने  सूली  गाद  दी,
तो  हर  मंसूर  की  आंखें 
अपना  मुक्कद्दर  पड़ने  लगी ...
***************

सूरज  तो  द्वार  पर  आ  गया,
लेकिन  किसी  किरण  ने  उठ  कर 
उस  का  स्वागत  नहीं  किया..
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Wednesday, 9 May 2012

परवीन शाकिर


अजीब  तर्ज़ -ऐ -मुलाक़ात  अब  की   बार  रही 
तुम्हीं  थे  बदले  हुए  या  मेरी  निगाहें  थीं
तुम्हारी  नज़रों  से  लगता  था  जैसे  मेरइ  बजाये
तुम्हारे  घर  मैं  कोई  और  शख्स  आया  है
तुम्हारे  ओहद  की  देनें  तुम्हें  मुबारक 
सो  तुम  ने  मेरा  स्वागत  उसी  तरह  से  किया
जो  अफसरान -ऐ  -हुकूमत  क  ऐताकाद  मैं  है
तकल्लुफ़ान  मेरे  नजदीक  आ  के  बैठ  गए
फिर  एहतमाम  से  मौसम  का  ज़िक्र  छेड़  दिया 
कुछ  उस  के  बाद  सियासत  की  बात  भी  निकली
अदब  पर  भी  कोई  दो   चार  तबसरे  फरमाए
मगर  न  तुम  ने  हमेशा  की  तरह  ये  पुचा
क्या  वक़्त  कैसा  गुज़रता  है  तेरा  जन -इ -हयात 
पहर  दिन  की  अज़ीयत  मैं  कितनी  शिद्दत  है
उजर  रत  की  तन्हाई  क्या  क़यामत  है
शबों  की  सुस्त  रावी  का  तुझे  भी  शिकवा  है
गम -ऐ  -फिराक  के  किस्से  निशात -ऐ -वस्ल  का  ज़िक्र
रावयातन  ही  सही  कोई  बात  तो  करते


Monday, 7 May 2012

THE HOUSE OF EMPTY EYES


The house of empty eyes is expensive
        let me become a line of dust
God has forgotten to create
a number of people
        let the sound of footsteps linger
        in my desolate eyes

The taste of fire
is a lamp
and the taste of sleep
is man
        pull me as tight as stone
        so people won't know
        I have no tongue
With God's tongue in my mouth
sometimes I become a flower
sometimes a thorn

Give the chains freedom
for man is more of a prison
than they are

I have to die alone
so
these eyes
this heart
        give them to some
        empty person
                     


                        by Sara Shagufta


 

Sunday, 6 May 2012

अलका निगम



अभिशप्त

माँ का गर्भ
नाम था दूसरा
प्रश्रय अपरिमित का
किन्तु विडंबना 
नारी के भाग्य की
अजन्मी वह छोटी-सी अवधी
भी टिक न पाई सुरचित
छोटा- सा वह घरोंदा
ठन्डे लोहयंत्रो की चपेट में
करह उठा
पुत्री ने उस अन्धकार में
अजन्मे ही
प्रस्र्य्दाता की ठंडी आँखों में
आँखे दाल दी
और पुचा
अब तुम भी
और यहाँ भी
औरत जात की चाप लिए

मे पर्वतों की दरारों से
खुराक खींचती थी
अजन्मे ही वह ठप्पा लगने पर
हाय, अब तो
जन्मदात्री ने ही
जन्म देने से इनकार कर दिया. 

सी -४ ब्रिज एन्क्लेव 
सुन्दरपुर रोड
वारानशी - ५
उत्तर प्रदेश